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सुन्दरकाण्ड पाठ विधि

hanuman ji

 सुन्दरकाण्ड पाठ विधि

मंगलवार को प्रातः 4.30 पर अथवा शाम को 4 बजे स्नान करने के बाद , मात्र लाल धोती और उपर अंगरखा, चादर, गमछा आदि धारण करें। कोई भी सिला वस्त्र धारण नहीं करना है।

इसके बाद पूजन स्थान या जहां भी आपको सुंदरकांड का पाठ करना है वहां पर गंगाजल मिश्रित जल से स्वयं पोछा लगाएं। 

इसके बाद दो लाल आसन लें। एक लाल आसन अपने लिए और एक श्री बजरंगबली के आसन हेतु।

पूर्व की तरफ मुंह करके बैठे । सामने एक लकड़ी की चौकी पर लाल आसन बिछाकर अथवा पूजन घर में लाल आसन के ऊपर हनुमान जी की फोटो या मूर्ति या पूरा राम दरबार की फोटो रखें। अब पहले गणेश जी का पूजन करें और हनुमान जी का संक्षिप्त पूजन करें। भोग में पांच बेसन के लड्डू रखें। उनके उपर तुलसी पत्र अवश्य रखें।

संक्षिप्त पूजन में तिल के तेल का दिया, चमेली की खुशबू वाली धूपबत्ती जलानी है।

सभी देवी देवताओं का जल छिड़ककर और उसके बाद उनको तिलक लगाकर फिर उनके ऊपर अक्षत और पुष्प चढ़ाकर उनका पूजन करना है।

 और उसके बाद अपने सामने बाई तरफ जमीन पर सिंदूर की सहायता से एक त्रिकोण बनाएं उस पर थोड़े अक्षत छिडके और उसके ऊपर दूसरा वाला लाल आसन बिछाकर उसके ऊपर फिर से अक्षत और पुष्प छिडके।

 फिर मन ही मन हनुमान जी से विनती करें "हे बजरंगबली में श्री सुंदरकांड का पाठ कर रहा हूं आपसे निवेदन है आप आकर आसन पर विराजमान हो और मेरे पाठ को सफल बनाएं मुझसे कोई त्रुटि हो जाए उसके लिए मुझे क्षमा करें।"

 इसके बाद सुंदरकांड का पाठ करना है गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित सुंदरकांड सबसे ज्यादा शुद्ध होती है।

 ऐसी व्यवस्था करनी है जब तक पाठ चले तब तक धूपबत्ती और दीपक निरंतर प्रज्वलित रहे।

 पाठ पूरा होने के बाद हनुमान चालीसा फिर श्री रामचंद्र जी की आरती उसके बाद हनुमान जी की आरती करनी है।

 आरती करने के पश्चात क्षमा याचना करें और पाठ में हुई किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा करने का निवेदन करें।

 इसके बाद हनुमान जी के लिए रखे आसन की ओर हाथ जोड़कर उन से निवेदन करें कि मैंने अपने सर्वोत्तम प्रयास द्वारा सुंदरकांड का पाठ किया है आप इस पाठ को सफल बनाएं और मेरे जीवन में आने वाली सभी प्रकार की कठिनाइयों को दूर करने का आशीर्वाद दें। 

 इसके बाद हनुमान जी से उनके स्थान पर जाने का आग्रह करें और हाथ जोड़कर आंख बंद करके 2 मिनट बैठे रहे और उसके बाद धीरे से उनके आसन की तरफ दंडवत प्रणाम करके आसन को मोड़ दें। आसन में रखे पुष्प अक्षत आदि सभी वस्तुओं को सिलाने वाले सामान में रख दें।

 फिर दंडवत प्रणाम करके उठ जाएं। अपने आसन को भी मोड़ कर रख दें।

 भोग को स्वयं खा लें और परिवार में बांट दें।