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गौशाला

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भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म परम्परा में गाय का महत्व सर्वाधिक माना गया है। गोदुग्ध, माता के दूध के समान गुणकारी, सुपाच्य और लाभदायक एवं कल्याण कारक होता है। गौ के पंचामृत और पंचगव्य के निर्माण से एवं उनके सेवन से अनेक अ:साध्य रोगों का शमन होने के साथ, यह गुणकारी भी होता है। इसलिए प्राचीन भारत में सबसे बड़ा धन गोधन को एवं सर्वश्रेष्ठ लोक को गोलोक या वैकुण्ठ कहा गया है। गो के प्रत्येक रोम में देवताओं का निवास है। इसी प्रकार इस के गोबर में भी अनेक विषाणुकीटों को मारने एवं दूर करने की क्षमता विद्यमान है। भारतीय मनीषी गाय के इन अलोकिक गुणों से वैदिक काल से परिचित हैं।
भारत में प्राचीन काल से ही गो-सेवा करने का वर्णन मिलता है। गाय की सेवा करने का विधान सुखदायक एवं फलदायक माना गया है। पूर्णावतार श्रीकृष्ण चन्द्र ने इसकी महत्ता को स्थापित करने के लिए व्रज वसुन्धरा में आकर गो चारण और गो वंश की रक्षा करने के लिए गो पालन किया। इसलिए भगवान् श्रीकृष्ण का एक नाम गोपाल भी है।

हमारा प्रयास है की उत्तम भारतीय वंश की गायों का पालन पोषण प्रत्येक भारतीय परिवार के द्वारा किया जाये. चाहे प्रत्यक्ष रूप से वो गौ-पालन करें या अप्रत्यक्ष रूप से चारा, चिकित्सा या धन द्वारा गोशालाओं या गौ-पालकों का सहयोग करें. वर्तमान के इसी के द्वारा पुन: भारतवर्ष में दूध-दही की नदियाँ बहाई जा सकती हैं.